फिर वही बात
फिर वही पन्ने दोहरा रहा हूँ जहाँ से था चला वापिस वहीं आ रहा हूँ मेरे गुनाहों की फेहरिस्त है बहुत लम्बी इनके बोझ तले दबा जा रहा हूँ जाने किस बात की है जल्दी जाने कैसी है छटपटाहट के तुम मिलो इसी मोड़ पर, अभी क्या है ये तुम्हारे कदमो की आहट जल्दी इस बात की है कि ये घाव भर जाए ये रात छटे और नई सुबह रौशन हो जाए इस ख्वाहिश में भी खुदगर्ज़ी की इंतहा देखो जैसे मरहम का असर भी मेरे कहने से हो जाए ये दर्द तुम्हारा रिस सा रहा है अभी गुज़रे कल का ज़ख्म है, फिर भी हरा है अभी वक़्त का मरहम चढ़ा तो है, लेकिन क्या करें ज़ख्म देने वाला सबसे अपना था कभी अपना अपना करते करते, अपनों को ताक पर रख दिया रिश्तों में आई दरारों को और भी गहरा कर दिया खुद हुआ शर्मसार, अपने सगे हुए शर्मिंदा अब खोजता हूँ मायने हर वक़्त, जिनसे रहूँ मैं ज़िंदा आजकल अक्सर खुद से ही हार जाता हूँ चाह कर भी उसकी आँखों में मंज़ूरी नहीं पाता हूँ उसे अपना बनाकर प्यार करने में डर लगता है पहले ही बहुत हार चु...